
नक्सल प्रभावित जिले बस्तर के किसान हाइटेक खेती के मामले में दुनिया के मानचित्र पर कदम रख चुके हैं। यहां ऐसी तकनीक का उपयोग कर पपीते की खेती की जा रही है जो पूरे भारत में इस समय चर्चा में है। अमीना वैरायटी के पपीते की खेती को लेकर जहां कुछ दिनों पहले दिल्ली में आयोजित फ्रेश इंडिया शो में जमकर सराहना हुई तो वहीं दूसरी ओर अब इसकी खेती देखने मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के किसान इन दिनों बस्तर के दौरे पर हैं।
महाराष्ट्र के सांगली, जलगांव, नंदुरबार और नासिक के 42 किसानों मध्यप्रदेश के खरगोन, खंडवा और धार के करीब 40 से अधिक किसानों ने बकावंड और जिले के अलग-अलग किसानों के यहां की गई पपीते की खेती को देखा और मल्चिंग तकनीक से गई खेती को देख प्रभावित हुए।
बस्तर किसान कल्याण संघ के अध्यक्ष संतोष तिवारी के खेत पर पहुंचने के बाद मध्यप्रदेश के किसानों पपीते की खेती को लेकर कई जानकारियां ली। तिवारी ने उन्हें बताया कि आमतौर पर बस्तर नक्सली घटनाओं के कारण चर्चित रहा हैै। परंतु इस बार बस्तर के चर्चा में बने रहने का कारण नक्सली वारदात नहीं बल्कि यहां के पपीते की मिठास है। उन्होंने एमपी और महाराष्ट्र के किसानों को बताया कि मूलतः यह स्पेन की हरमाप्रोराइट तकनीक है।
इसका इस्तेमाल 10 साल पहले वहां के ग्रीन हाउस में पपीता के उत्पादन के लिए किया गया पर अब पूरे विश्व में बस्तर में ही इस तकनीक का उपयोग हो रहा है जिसमें डीएनए तकनीक के माध्यम से पपीता के पौध के पत्तों का डीएनए टेस्ट कर उभयलिंगी पौधों का चयन किया जा रहा है। खेत में खाद एवं दवा की निश्चित मात्रा में आपूर्ति के लिए इजराइल की मल्चिंग विधि और मौसम पर नजर बनाए रखने के लिए मौसम केंद्र भी स्थापित किया गया है।
फसल को आकाशीय बिजली के प्रकोप से बचाने के लिए तड़ित चालक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने दोनों राज्यों के किसानों बताया कि इस समय बस्तर जिले में इस हाईटेक तकनीक का उपयोग कर किसानी करीब 500 एकड़ में इसकी खेती कर रहे हैं।
एक एकड़ में कमा सकते हैं करीब 8-10 लाख रुपए
किसान कल्याण संघ के सदस्य रमेश चावड़ा और अन्य किसानों ने एमपी और महाराष्ट्र के किसानों को बताया कि वे इस फसल की खेती करने से प्रति एकड़ करीब 8-10 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं। बस्तर जिले में किसान इसी लक्ष्य को रखते हुए खेती कर रहे हैं। चावड़ा ने बताया कि पपीते के अमीना वैरायटी को एक प्राइवेट कंपनी ने तैयार किया है। इस पपीते की खास बात यह है कि यह लंबा और स्वाद में मीठा होता है। बड़ा साइज नहीं होने से परिवहन में आसानी होती है।
किसान एक एकड़ में करीब 550 पौधे लगाकर इसकी खेती कर सकता है। इसकी तुड़ाई करने के बाद इसका परिवहन करीब 7 दिनों तक आसानी से किया जा सकता है। मल्चिंग विधि से की जाने वाली पपीते की खेती कतार से कतार की दूरी दस फीट व पौधों की दूरी 8 फीट रखी जाती है। फल लगने के करीब डेढ़ साल तक इसमें फल आता है। प्रति एकड़ 80 टन पपीता का उत्पादन होता है।
तीरथगढ़ को बनाया पपीते की खेती का हब
किसान कल्याण संघ के अध्यक्ष ने बताया कि पपीते की खेती को देखने के बाद मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के किसान शनिवार को तीरथगढ़ जाने वाले थे। लेकिन वे वहां पर नहीं गए। ज्ञात हो कि बस्तर जिले के नक्सल प्रभावित इलाके दरभा ब्लॉक के तीरथगढ़ में और उसके आसपास के इलाकों में 31 एकड़ में पपीते की खेती महिला समूहों द्वारा की गई है। किसान कल्याण संघ और उद्यानिकी विभाग ने पूरे तीरथगढ़ की पहचान इन दिनों पपीते की खेती के रूम में करते हुए उसे एक हब के रूप में तैयार किया है। किसान कल्याण संघ के पदाधिकारियों ने 43 सदस्यों वाली महिला समूह ने मामड़पाल में पांच एकड़ में, मुनगापदर में 16 एकड़ में और तीरथगढ़ में 10 एकड़ में पपीते की सामुदायिक खेती की है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 21 जून को वर्चुअल कार्यक्रम के दौरान इस प्रोजेक्ट को लांच किया था।