“कीटनाशक दवाई से फसल खराब हो गई तो किसान ने अपने आप को आग के हवाले कर दिया “

किसान का आक्रोशित होना भी समाज के लिए घातक है

कीटनाशक दवाई से फसल खराब हो गई तो किसान ने अपने आप को आग के हवाले कर दिया

मनीष बाफना -यह खबर बहुत ही संवेदनशील टाइमलाइन की तरह है जहां एक किसान कीटनाशक का उपयोग करता है परंतु वह देखता है कि  कीटनाशक के उपयोग के पश्चात उसकी फसल खराब हो गई। यह हादसा बंडा तहसील के चौका गांव निवासी किसान शीतल कुमार रजक ने अपने खेत में सोयाबीन बोया था, लेकिन वर्षा न होने से सोयाबीन में इल्लियां लगने लगी थी। इस कारण किसान ने बाजार से इल्ली मार दवा खरीदी थी, लेकिन जब उसने फसल पर दवा का छिड़काव किया गया तो दवा के प्रभाव से फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई। इसके बाद किसान सोमवार को शिकायत करने के लिए बंडा थाना पहुंचा, जहां पुलिस ने कार्रवाई न करके उसे आश्वासन देकर वापस कर दिया था। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई नहीं की तो उसने थाना परिसर पहुंचकर स्वयं पर पेट्रोल छिड़क लिया और आग लगा ली। यह खबर दिल और दिमाग     को चौंकाने वाली है, क्योंकि किसान ने  जिस आवेश में उसने यह कदम उठाया , इस कदम को कदापि कृषक समाज बिना सोचे समझे इस कृत्य को स्वीकृति नहीं दे सकता ।  संयम और धैर्य की जागृति सदा मनुष्य के मन में समायोजित होनी चाहिए।  जब संयम और धैर्य  पर आवेश कुठाराघात करता है तो यह हादसा होता है।  इसे किसानों के आंदोलन का चेतना का प्रादुर्भाव भी कहा जा सकता है ? यदि कीटनाशक का प्रभाव नकारात्मक पड़ा तो उसकी शिकायत उप संचालक कृषि को की जानी थी।  यदि किसान को   सही  शिकायत

केंद्र के बारे में  पता होता तो ,वह पुलिस स्टेशन नहीं जाकर कृषि विभाग जाता  ।  जहां पर किसान को उचित सुनवाई का मौका मिलता।  आमतौर पर देखा जाता है पुलिस थानों पर व्यक्ति ज्यादा अपमानित महसूस करता है।  शिकायत निवारण का उचित केंद्र की समझ यदि मृतक कृषक में होती तो ,निश्चित ही यह हादसा टल जाता । कई बार देखा गया है कि कीटनाशक दवाई का परिणाम उचित नहीं होता , संतोषजनक न होने के बाद भी दुकानदार, कृषि विभाग और किसान तीनों मिलकर कोई संतोषजनक परिणाम आमतौर पर निकाल लेते हैं

जब प्रशासन ने कृषि विभाग से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी तो कृषि विभाग ने जांच कर पाया कि, कीटनाशक दवाई उचित और सही थी परंतु फसल का मुरझाना या पीला पड़ जाना उसका कोई अलग कारण था ।

नुकसान होने पर आक्रोशित होना एक वाजिब कारण है, परंतु संयम और धैर्य के साथ और विचार विमर्श के बाद ही समस्या का समाधान किया जाना चाहिए । वैसे भी कृषि क्षेत्र बहुत ही परिवर्तन और जोखिम भरा होता है इसमें किसी एक कारण को दोषी बताकर न्याय की मांग नहीं की जा सकती।  एक किसान की जलकर मृत्यु होना समाज को यह संदेश देता है कि, प्राकृतिक विपदा में किसान ऐसे संकट को संभाल नहीं पाता है , परंतु जिम्मेदार संस्था , व्यक्ति व   समाज को बड़ी सूझबूझ के साथ व्यक्ति को वास्तविकता से परिचित  करा कर ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना को टाला जा सकता है।

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