खेती करने की बजाये मजदूर बनकर काम करना सबसे अच्छा।

by–MANISH BAFANA

नेशनल सैंपल सर्वे की Situation Assessment of Agricultural Households and Land and Livestock Holdings of Households in Rural India 2019 रिपोर्ट के जो आंकड़े सामने आए हैं, उससे यही लगता है कि किसान की खेती में दिलचस्पी घटती जा रही है। सर्वेक्षण के अनुसार किसान की कमाई का एक बड़ा जरिया मजदूरी बन गई है। उसे करीब 40 फीसदी कमाई मजदूरी से हो रही है।

एनएसएस की 77वें दौर की गणना पर आधारित इस बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट (सिचुएशन असेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल हाउसहोल्ड एंड लैंड एंड लाइवस्टॉक हाल्डिंग्स ऑफ हाउसहोल्डस् इन रुरल इंडिया,2019) को लेकर अखबारों में ज्यादातर सुर्खियां इस एक बात पर केंद्रित रही हैं कि देश के औसत किसान-परिवार पर कर्ज का बोझ 47,000 रुपये से बढ़कर अब 74,000 रुपये हो चला है.

खेती छोड़ मजदूरी कर रहे हैं किसान ?

सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार कृषि वर्ष  जुलाई 2018 -जून 2019  के दौरान किसान औसतन हर महीने 10,218 रुपये कमाता है। जिसमें से 4023 रुपये वह मजदूरी (Wages)से कमा रहा है। जबकि फसलों से होनी वाली कमाई 3798 रुपये हैं। वहीं अगर 2012 से तुलना की जाए तो वह औसतन हर महीने 6021.45 रुपये कमा रहा था । उसमें से मजदूरी से होने वाली कमाई केवल 621.69 रुपये थी। साफ है कि 7 साल में किसानों की मजदूरी पर निर्भरता बढ़ गई है। इस दौरान उसकी कुल कमाई में मजदूरी से होने वाली कमाई की हिस्सेदारी 10 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी हो गई है। किसान अब धीरे-धीरे मजदूर बनते जा रहे हैं। और कृषि संकट  गहराता जा रहा है। यही नहीं अगर फसल के उत्पादन से होने वाली कमाई को देखा जाय तो रियल टर्म के आधार पर तो किसानों की इनकम 11.7 फीसदी कम हो गई है।

फसल कटाई के बाद किसान मंडी या बाजार में उसे बेच देते हैं. इसके बदले उन्हें जो कीमत अदा की जाती है और उपभोक्ता उसके लिए जो कीमत चुकाते हैं, दोनों में बहुत अंतर है. शोधकर्ताओं ने बताया कि उपभोक्ता खाद्य पदार्थों के लिए जो भुगतान करता है, उसका बमुश्किल एक चौथाई हिस्सा ही किसानों के हिस्से आता है.

बमुश्किल मिल पाता है एक चौथाई हिस्सा

फसल कटाई के बाद किसान मंडी या बाजार में उसे बेच देते हैं. इसके बदले उन्हें जो कीमत अदा की जाती है और उपभोक्ता उसके लिए जो कीमत चुकाते हैं, दोनों में बहुत अंतर है. शोधकर्ताओं ने बताया कि उपभोक्ता खाद्य पदार्थों के लिए जो भुगतान करता है, उसका बमुश्किल एक चौथाई हिस्सा ही किसानों के हिस्से आता है. कॉर्नेल यूनिवर्सिटी अध्ययनकर्तओं ने अपने शोध में बताया कि लोग यह नहीं जानते हैं कि हम अपने भोजन के लिए कितना खर्च करते हैं, वह भोजन भी सही है या नहीं इसके बारे में भी बहुत कम जानकारी होती है.

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