
- विजयवाड़ा-आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मिर्च उत्पादक किसानों को थ्रिप्स कीटों वजह से गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस सीजन में लगभग 5 लाख एकड़ इलाके में थ्रिप्स कीटों का प्रकोप देखने को मिल रहा है। इलाके में प्रति एकड़ लगभग 6 क्विंटल मिर्च की फसल होती है, जो लगभग 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकती है। यानी किसानों को प्रति एकड़ 60 हजार रुपए का नुकसान हुआ है। 5 लाख एकड़ के हिसाब से किसानों को लगभग 3,000 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान है।
गुंटूर जिले के कोथापालम गांव के किसान मन्नेमपल्ली नरसिम्हाराव बताते हैं कि उन्होंने 4.5 एकड़ में मिर्च की फसल बोई थी, जो थ्रिप्स की वजह से तबाह हो गई है। ऐसे ही कारुचोलू गांव के किसान गौतम श्रीनिवास राव कहते हैं कि वेस्टर्न फ्लॉवर ब्लैक थ्रिप्स की वजह से इलाके में मिर्च और अन्य फसलों को जमकर नुकसान हुआ है। राव का कहना है कि सरकार ने डीडीवीपी जैसे प्रभावी कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसकी वजह से थ्रिप्स जैसे कीटों की संख्या बेहिसाब बढ़ गई है। दोनों ही प्रदेशों के हजारों किसान इस कीट आपदा से प्रभावित हुए हैं और सरकार से राहत देने की मांग की है।
तेजी से बढ़ने वाली कीट की प्रजाति है थ्रिप्स
साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के निदेशक भगीरथ चौधरी के मुताबिक थ्रिप्स एक ऐसी कीट प्रजाति है, जिसमें पुरुष और मादा जननांग एक ही कीट में होने की वजह से यह बहुत ही तेजी से अपनी संख्या बढ़ाती है। अगर इस पर शुरुआत में ही नियंत्रण नहीं किया गया तो यह काफी तबाही मचा सकती है। इस कीट पर नियंत्रण के लिए समेकित योजना बनाकर काम किया जाना चाहिए।
प्रभावी विकल्प के बगैर कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगने से बढ़ी समस्या
किसानों का कहना है कि मिर्च के थ्रिप्स, कपास के पिंक बालवर्म और चावल के बीपीएच जैसे कीटों पर असरकारी फॉसेलोन और डीडीवीपी बाजार से गायब हो गए हैं या इन पर सरकारी प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन दोनों ही प्रोडक्ट के इस्तेमाल से समय रहते इन कीटों पर नियंत्रण हो जाता था और फसल अच्छी होती थी। लेकिन अब इनके जैसा कोई भी प्रभावी उत्पाद बाजार में उपलब्ध नहीं है। इन उत्पादों पर सिर्फ इसलिए बैन लगा दिया गया क्योंकि ये दूसरे देशों में बैन थे, लेकिन इसके लिए भारतीय परिस्थितियों में इनकी प्रभावशीलता को ध्यान में नहीं रखा गया और न ही इन्हें बाजार से हटाने से पहले किसानों से कोई परामर्श किया गया। किसान पिछले 2-3 दशकों से इन कीटनाशकों का सफल इस्तेमाल करते आ रहे थे।
जानकारों और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि एग्रोकेमिकल्स के इस्तेमाल की समीक्षा करते समय अलग-अलग मोड ऑफ एक्शन (एमओए) की भूमिका पर विचार करना भी काफी जरूरी है। ऑर्गेनो-फॉस्फोरस ग्रुप के एग्रोकेमिकल्स को बैन किए जाने से कीट नियंत्रण की रणनीति पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। भारत को अपने छोटे किसानों की उपयोगिता के आधार पर और अपने कृषि-जलवायु संबंधी आंकड़ों के आधार पर कीटनाशकों की समीक्षा करनी चाहिए न कि यूरोप या अन्य देशों की ठंडी जलवायु के आधार पर।
किसी खास प्रजाति के लिए अनुशंसित तरीके और मात्रा में उपयोग नहीं करने या उसका अधिक और गलत तरीके से उपयोग करने से उस कीट में उस कीटनाशक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। बार-बार नए उत्पादों की खोज और निर्माण एक महंगी प्रक्रिया है। इसलिए मौजूदा कीटनाशकों का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। जानकारों का कहना है कि बगैर गहन अध्ययन किए ऐसे प्रभावी उपायों को प्रतिबंधित करने से फसलों और किसानों की आजीविका पर गंभीर असर पड़ सकता है।