धरती माता की कोख बंजर बनती जा रही है ,,

Manish bafana
जिस प्रकार धरती माता अपनी उपजाऊ क्षमता को खोती जा रही है, सतत निरंतर मिट्टी की उर्वरक क्षमता में कमी होने से कृषि उत्पादन ओं की गुणवत्ता में अत्यंत कमी हो रही है। कई कृषि उत्पादन में पौष्टिकता का स्तर मानक स्तर से भी कम चला गया है। कई वर्षों से खेती करने ,मिट्टी की उपजाऊ क्षमता पर ध्यान न देने ,के कारण मिट्टी अपनी उपजाऊ शीलता को खो चुकी है। मिट्टी के उपजाऊ में कमी आने का कारण किसी एक को दोष नहीं दिया जा सकता। उसमें कई कारक शामिल है । अज्ञानता के कारण भूमिका दोहन और अ विवेक रूप से उर्वरक, कीटनाशक का कूप्रबंध और बढ़ती जनसंख्या ,जिस प्रकार खेती के ऊपर बोझ बनकर उभर रही है। यह सभी कारण मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को खत्म कर रहे हैं। गेहूं, चावल, दाल ,तेल, सब्जी, फल अब हर जगह इनकी पौष्टिकता में कमी देखी जा रही है। यह कमी आने वाले समय में मनुष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा दिख रही है । पौष्टिकता का स्तर कम होने पर मानव जीवन गहरे अंधेरे कुएं में समा सकता है । जब पौष्टिक आहार मनुष्य को प्राप्त नहीं होगा तो दुर्बलता आएगी और कुपोषण का शिकार प्रत्येक नागरिक होगा। वर्तमान में मोदी सरकार ने चावल में फोर्टिफाइड चावल देने का ऐलान किया है अर्थात चावल में ऊपर से पौष्टिक आयरन और मिनरल मिलाना | फोर्टिफाइड चावल का मतलब है, पोषकयुक्त चावल. इसमें आम चावल की तुलना में आयरन, विटामिन बी-12, फॉलिक एसिड काफी ज्यादा होता है. ये देखने में आम चावलों जैसे ही लगते हैं. इन्हें सामान्य चावलों की तरह धोकर उबालकर पकाकर खाया जा सकता है। जिससे अप्राकृतिक रूप से भोजन को गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम रूप से तैयार करना। देश में एनीमिया और पोषक तत्व की कमी के समाधान के लिए भारत सरकार ने 3 वर्ष की अवधि के लिए चावल के फोर्टिफिकेशन और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 2024 तक 375 लाख टन चावल वितरित करने का कार्यक्रम बनाया है | इसी कार्यक्रम से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में कुपोषण का साम्राज्य किस दिशा में आगे बढ़ रहा है | सबसे बड़ी बात और सोचने वाली बात यह है कि,आज मानव जीवन किस अंधेरे की ओर मुड़ चुका है। जहां पर उसे खाने के लिए उच्च गुणवत्ता और पौष्टिकता खाद्य पदार्थ उसके पहुंच से बाहर होता जा रहा है | यह दुनिया के लिए एक खतरे की घंटी है। विशेषकर भारत के लिए क्योंकि यहां पर जनसंख्या इतनी विकराल और सघन हो चुकी है कि ,पूरी आबादी को पौष्टिक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना बहुत बड़ी चुनौती है। और आने वाले समय में जब मिट्टी की उपजाऊ क्षमता समाप्त हो जाएगी और खेती के लिए पानी का संकट खड़ा होगा और व्यक्ति को अपने आवश्यकतानुसार जल की कमी होगी , तब भारत में त्राहि-त्राहि होगी

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