Manish bafana
Manish bafana -मध्य प्रदेश पर सोयाबीन पीला सोना का तमगा लगा हुआ है , मध्य प्रदेश के किसानों की किस्मत बदलने वाली फसल सोयाबीन को माना जाता है | सोयाबीन ने मध्य प्रदेश की आर्थिक हलचल को मजबूत किया है | सोयाबीन फसल की उत्पादकता तभी बढ़ेगी जब किसानों के पास अच्छे किस्म का बीज सुगम तरीके से प्राप्त हो | पूरे मध्यप्रदेश में 1100 सौ से अधिक बीज उत्पादक निजी और किसानों की सहकारी संस्था बीज बनाने का काम करती है | गत वर्ष 2021 में 10 लाख क्विंटल बीज का उत्पादन किया गया परंतु इस वर्ष 2022 में 7लाख कुंटल बीज उत्पादन का कार्य इन संस्था द्वारा किया जा रहा है| यह भी बताया जा रहा है कि इस वर्ष 2लाख कुंटल बीच की कमी वर्ष 2022 में रहेगी | बीज की कमी के कई कारण है ,कहीं-कहीं मौसम, किट व्याधि को बताया जा रहा है |तो कहीं पर उत्पादन कम होने का कारण भी बताया जाता है |और कई बीज संस्थाएं भी खुलकर यह बता रही है कि, अब प्रदेश भर में बीज उत्पादन ” इजी फार डूइंग “व्यवसाय नहीं रहा है |
बार-बार छानबीन की प्रक्रिया बीज उत्पादन करने में दिक्कत
सरकार द्वारा बीज उत्पादन प्रक्रिया को इतना कठिन कर दिया गया है कि, अब कई बीज उत्पादक संस्थाएं बीज व्यवसाय बंद करने की सोच रही है और कुछ संस्थाओं बंद हो चुकी है| सरकारी प्रक्रिया जटिल होने से अब यह बीज उत्पादन व्यवसाय” इजी फॉर डूइंग “नहीं रहा | कई बीज कंपनियों ने बताया कि सरकार का सख्त लहजा और बार-बार छानबीन की प्रक्रिया बीज उत्पादन करने में दिक्कत दे रही है | बीज विशेषज्ञ डॉक्टर जेपी सिंह ने बताया कि बीज का एक ही बेच लॉट का बार बार प्रयोगशाला में परीक्षण कराया जाता है |वही बीज लॉट एक प्रयोगशाला में सफल होता है तो दूसरे में उसको अमानक बता दिया जाता है | विसंगतियां यहीं खत्म नहीं होती है, जब कोई बीच अमानक करार दिया जाता है तो कंपनी का बीज लाइसेंस निरस्त कर दिया जाता है| परंतु राष्ट्रीय बीज निगम, मध्य प्रदेश राज्य बीज निगम ,महाराष्ट्र राज्य बीज निगम, कृभको और अन्य बड़ी सरकारी संस्थाओं का बीज अमानक होने पर भी उन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है |
कृषि विभाग और अन्य विभाग के अधिकारी बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं में प्रतिनियुक्ति पर आने की भरसक कोशिश करते हैं |
इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चासनी कितनी मीठी है | कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इंदौर प्रवास पर आए थे , उन्होंने भी सोयाबीन को मध्यप्रदेश का मुकुट बताया था | परंतु इस मुकुट में रत्न तभी लगेंगे जब किसानों को सोयाबीन बीज बड़ी सुगमता के साथ उपलब्ध हो |इस वर्ष भी देखा जा रहा है कि ₹10000 कुंटल की सोयाबीन किसान खरीद कर, अपने खेतों में डालेगा | परंतु यह दर उसके लागत से कई गुना अधिक होगी | क्योंकि प्रमाणित सोयाबीन का बीज अधिकांश किसानों की सोसाइटी के माध्यम से किसानों को प्राप्त होने की संभावना है | परंतु मध्यप्रदेश में किसानों द्वारा गठित बीज उत्पादक सहकारी समिति ने बीज उत्पादन कार्यक्रम बहुत कम मात्रा में किया है |
कई बीज उत्पादक संस्थाएं ने अपना काम बंद कर दिया है -|बताया जाता है कि सरकारी कठोरता और लाभ की गुंजाइश कम होने से किसानों की बीज उत्पादन सहकारी समिति बंद होने की कगार पर खड़ी हो गई है | कई बीज उत्पादक सहकारी संस्थाओं को वर्ष 2019 का बकाया भुगतान भी नहीं प्राप्त हुआ है | इन संस्थाओं ने केंद्रीय जिला सरकारी बैंकों को सोयाबीन बीच विक्रय किया था जिसका भुगतान भी लंबित है | वैसे भी भारतीय जनता पार्टी जब विधानसभा चुनाव लड़ने गई थी अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि प्रदेश को बीज उत्पादन करने वाली कंपनियों पर से सरकारी शिकंजा समाप्त करके उन्हें पूर्ण रूप से स्वतंत्रता दे दी जाएगी |और प्रमाणीकरण संस्था का निजीकरण कर दिया जाएगा | परंतु घोषणा मात्र घोषणा रह गई है ,ऐसे में प्रदेश भर में उत्पादक संस्था अपना कारोबार बंद करने की सोच रही है | और आने वाले समय में यह बीज उद्योग समाप्त हो चुके होंगे |म.प्र. में ही गत वर्ष सोयाबीन बीज का संकट विकट था | खरीफ 2022 में लगभग 2 लाख क्ंिवटल से अधिक बीज की कमी होने की संभावना है जो चिंता का विषय है ।
महाराष्ट्र और कर्नाटक सोयाबीन बीज उत्पादन में कंपनियों को सरलता और सहयोग प्रदान करता है
इसी प्रकार राजस्थान में भी बीज उत्पादन प्रक्रिया को सरल कर रखा है | मध्य प्रदेश के कई बीज कंपनियां अपना कारोबार समेट कर सीमावर्ती राज्यों की और मुंह मोड़ रही है | किसानों और प्रदेश को आर्थिक मजबूती देने वाली फसल सोयाबीन का बीज उच्च गुणवत्ता के साथ-साथ सुगमता से प्राप्त हो सके ऐसी व्यवस्था राज्य सरकार को करनी होगी |नहीं तो सोयाबीन का प्रमाणित बीज उत्पादन करने वाली संस्थाएं अपना कारोबार कब बंद कर दे ,कहा नहीं जा सकता ?