हो रही है बैलों की वापसी

मशीनीकरण के बाद पहली बार छोटे किसानों की मदद के लिए खेती में बैलों को पुनर्जीवित करने की पहल हुई है

Team harit –भारतीय कृषि अनुंसधान संस्थान के अधीन 1987 में स्थापित ऑल इंडिया कॉर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन इंक्रीज्ड यूटिलाइजेश ऑफ एनिमल एनर्जी (एआईसीआरपी) के प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर एम दीन कहते हैं, “मशीनीकरण के बाद ट्रैक्टरों को सब्सिडी दी गई और सरकारों ने मशीनों का पक्ष लिया। आज ट्रैक्टर कंपनियां किसानों के दरवाजे तक पहुंच गई हैं, जबकि ड्रॉट पशुओं के उपयोग के बारे में ज्यादा बात नहीं की गई।”

मशीनीकरण ने मुख्यत: बड़े किसानों को लाभान्वित किया है। ये देश की किसान आबादी का 15 प्रतिशत हैं, लेकिन खेत की 75 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं। 2 हेक्टेयर से कम जोत वाले छोटे और सीमांत किसानों के लिए ट्रैक्टर एक महंगा सौदा है।

कर्नाटक के रायचूर जिले में एआईसीआरपी के नौ केंद्रों में एक कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय ने बैलों के कुशल उपयोग के लिए कई अन्य उपकरणों को विकसित किया है। रायचूर में एआईसीआरपी सेंटर के इंचार्ज व सहायक कृषि इंजीनियर केवी प्रकाश बताते हैं, “हम बैलों की मदद से कीटनाशकों के छिड़काव को लोकप्रिय बनाने की कोशिश कर रहे हैं। स्प्रेयर की कीमत 90,000 रुपए है और राज्य सरकार से 50 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है। रायचूर में अब बैलों का उपयोग शुद्ध बोए गए क्षेत्र के 30 प्रतिशत हिस्से में किया जाता है।”

महाराष्ट्र के परभणी जिले के किसान अपने बैलों को दलहन और आटा पीसने के लिए कृषि उद्योगों को पट्टे पर दे रहे हैं। इससे उन्हें अतिरिक्त आय अर्जित करने में मदद मिलती है।

एआईसीआरपी ने एक बैलगाड़ी भी विकसित की है जो हर बार चलने पर बिजली उत्पन्न करती है। बिजली गाड़ी के नीचे रखी बैटरी में संग्रहीत हो जाती है।

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