देश की मजबूत मोदी सरकारटिकैत के आगे टिक नहींपारही है  , क्यों  ????

मनीष बाफना

कोरोना काल  में  मोदी सरकार ने जिस प्रकार तीन कृषि कानूनों को लागू करने का भरसक प्रयास किया। किसानों को तीनों कृषि कानूनों के बारे में  समझाने में  मोदी सरकार ने एड़ी चोटी लगाकर प्रयास किया ।  किंतु पंजाब, हरियाणा  और कुछ उत्तर प्रदेश के किसानों ने दिल्ली के आसपास, जिस प्रकार झंडा गाड़  कर हुकार भरी और यह  विरोध की पुकार 1 वर्ष तक चलती ।  सुप्रीम कोर्ट ने भीकोई स्पष्ट निर्णय न सरकार को सुनाया ,नहीं किसानों को  सुनाया। मोदी सरकार यह चाह रही थी कि  सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से इन तीनों कृषि कानूनों की वैधता पर मोहर लग जाए, पर सुप्रीम कोर्ट बीच-बचाव की मुहिम में खड़ा था।  संयुक्त किसान मोर्चा दिन प्रतिदिन नित्य नए-नए ऐलान करके केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास कर रहा था । इसी बीच दिल्ली रैली में हिंसक घटना को देखते हुए कुछ किसान संगठनों ने संयुक्त मोर्चा से अपना सहयोग वापस ले लिया।  उस दौरान यह महसूस होने लगा था कि ,अब केंद्र सरकार सख्ती से संयुक्त मोर्चा के अग्रणी नेता राकेश टिकैत को खदेड़ देगी।  परंतु राकेश टिकैत ने शह-मात की चाल खेल कर बाजी पलट दी। केंद्र सरकार के कृषि मंत्री केवल और केवल अपील ही जारी करते रह गए ।  यह तो कहना ही पड़ेगा 7 साल के शासनकाल में मोदी सरकार किसानी मुद्दों के बीच घिरी नजर आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को  राजनीतिक चाणक्य प्रमोद महाजन और अरुण जेटली की याद अवश्य आ रही होगी, क्योंकि वह ऐसे मंझे हुए राजनीतिज्ञ थे, जिनके जेब में हमेशा राजनीतिक हल  सदा  रहता था।   मजबूत मोदी सरकार  राकेश टिकैत और संयुक्त किसान मोर्चा के आगे  वर्त्तमान में  बेबस  ही  नजर आ रही है।  यूपी चुनाव जो कि भारतीय जनता पार्टी के लिए  तुरूप का इक्का होता है , उसे कोई भी गुलाम मिया बादशाह  खराब ना कर दे ? इस कारण मोदी सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा  करके,  यह सोच लिया कि आंदोलन समाप्त होजायेगा ,  केंद्र सरकार की तारीफ होग।   परंतु राकेश टिकैत जो  किसानों के एक छत्र नेता बन चुके थे, वह किसी भी हालत में आंदोलन को समाप्त कर, बेरोजगार होना नहीं चाहते थे ।  तभी टिकैत ने अपने म्यान से पुरानी जंग लगी  MSP की तलवार निकालकर, मोदी सरकार के आगे तान दी। अब मोदी सरकार असमंजस की स्थिति में  खड़ी हो गई है।  तीनों कृषि कानून लेने के बाद भी स्थिति पहले से ज्यादा विस्फोटक होती जा रही है।  इससे ज्यादा बेहतर यह होता कि तीनों कृषि कानूनों को वैसे ही बने रहने देते ,तो शायद किसानों की एकता इतनी मजबूत नहीं होती।  एमएसपी ऐसा सांप छछुंदर है  जो ना निगलते और ना उगलते बनता है।  एमएसपी पर 2011 में प्रधानमंत्री  मोदी ने भी अपना समर्थन व्यक्त करते हुए, राजनीति की थी।  MSPऐसा अमृत से बना विष  है , जो विपक्ष के लिए  यह अमृत होता है और  सत्ता धारी के लिए  जहर।  राकेश टिकैत ने 26 जनवरी तक की समय सीमा केंद्र सरकार को बता दी है।  चार लाख ट्रैक्टर ले जाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य का आगाज करेंगे।  जिस प्रकार मोदी सरकार 3 कृषि कानूनों को वापिस  लेकर इस बात से बेखबर थी ,कि  वापस लेने के बाद आंदोलनकारी शांत हो कर  घर लौट जाएंगे | परंतु हुवा  उल्टा ,आंदोलनकारी और शक्ति के साथ एकत्रित होकर एमएसपी की ओर मुड़ गए हैं।  जिसे पूरा करना मोदी सरकार के लिए सरल सरल ही नहीं है, बहुत बहुत कठिन होगा । एक मजबूत सरकार  बहुत ही मासूमियत से कमजोर दिख रही है।

कुशाग्र चाणक्य राजनीति, किसान  आंदोलन के आगे नतमस्तक और कमजोर होती  नजर  आरही  है।सिंघु बॉर्डर पर चल रही मीटिंग में किसान आंदोलन खत्म कर घर वापसी को लेकर मंथन चल रहा है। यह भी चर्चा हो रही है कि अगर कुछ किसान नेता घर वापसी पर सहमत नहीं है तो पंजाब के किसान संगठनों को क्या कदम उठाना चाहिए? हालांकि पंजाब के किसान नेता चाहते हैं कि सर्वसम्मति से ही इसका फैसला हो। ताकि किसानों की एकता को लेकर कोई गलत संदेश न जाए।

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