
मनीष बाफना – मांग और पूर्ति में सामंजस्य रखना जरुरी है , देखा यह जा रहा है कि समर्थन मूल्य के कारण धान और गेहूं की बोनी अपनी लिमिट क्रॉस कर रही है जो राज्य जिस कृषि जींस के लिए अधिसूचित है उन्हें वही लगाना चाहिए और खरीदी भी इसी आधार पर होनी चाहिए । खेती में विविधीकरण ना होने के कारण भेड़ चाल होने की वजह से पूरे देश में एक जैसा सर प्लस उत्पादन कर देने से कृषि उपज को उचित मूल्य नहीं मिलता । जो राज्य जिसके लिए अधिसूचित है वह वहीं कृषि उपज को लगाए । उदाहरण के तौर पर जब आलू के दाम अधिक होते हैं तो कई राज्य के किसानआलू लगाने लगते हैं इसी प्रकार प्याज, सरसों ,तिल, सोयाबीन और गेहूं में देखा गया। क्रॉपिंग पेटर्न को सेंट्रलाइज और मैकेनाइज करने के साथ मानिटरिंग करते हुए मांग और पूर्ति के आधार पर सरकार को एडवाइजरी जारी करना चाहिए। जिससे अधिक उत्पादन आने पर भाव नीचे नहीं गिरे। या सख्त नियम बने। लहसुन में भी देखा गया है अधिकांश राज्य के किसान ऊंचे भाव देखकर लगाने लगते हैं, फिर भाव ना मिलने के कारण आंदोलन होते हैं। अनचाही फसल बोने के पैटर्न पर कड़ाई से रोकथाम होनी चाहिए। हर राज्य विविधीकरण आधारित फसल लगाएं जिससे सर प्लस क्रॉप प्रोडक्शन ना हो जब सर प्लस क्रॉप प्रोडक्शन नहीं होगा तो मांग अधिक होने से कृषि उपज के दाम भी ज्यादा मिलेंगे अभी वर्तमान में हो यह रहा है कि अधिकतम समर्थन मूल्य पर जो कृषि जिंसों को सरकार खरीद कर रही है वहीं अधिकांश किसान ज्यादा से ज्यादा लगा रहे हैं सरसों को देखा जाए तो कुछ राज्य ही लगाते हैं वर्तमान में इनके भाव सबसे ज्यादा मिले इसी प्रकार सोयाबीन मूंगफली में भी किसानों को अच्छे भाव मिले हैं यदि सरसों सभी क्षेत्र में लगाने लगे तो दाम गिर जाएंगे किसानों को नुकसान होगा केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर मैकेनाइज क्रॉपिंग पेटर्न क्लाइमेट जोन के आधार पर बनाना चाहिए जिससे मांग और पूर्ति में संतुलन बना रहे और किसानों को उनकी उपज का अधिक से अधिक दाम और लाभ मिल सके
किसान नेता और केंद्र सरकार दोनों को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को तिलांजलि देते हुए गंभीरता से किसानों के बारे में सोचने का समय आ गया है।