खाद पर हाहाकारः आखिर क्या है किल्लत की वजह, इसलिए परेशान हो रहे किसान
manish bafana -मध्यप्रदेश के अलग अलग जिलों में खाद की किल्लत से किसान परेशान है. एक तरफ रबी की फसल की बुवाई शुरू होने को है और दूसरी तरफ किसान रासायनिक खाद की कमी से जूझ रहे हैं. जानकारी के मुताबिक 52 से 25 जिलों में जरूरत से कम खाद मौजूद है. जिसके चलते खाद पर्याप्त नहीं मिल पा रहा है. जिससे अराजकता का माहौल भी बनता दिखाई दे रहा है. |केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय ने ,देश के किसानों को यह भरोसा दिलाया था की , अब यूरिया को नीम कोटेड कर दिया गया है। जिससे यूरिया का इस्तेमाल अन्य उद्योगों में नहीं हो सकेगा और कालाबाजारी भी समाप्त हो जाएगी। देश के किसानों को पर्याप्त मात्रा में यूरिया सुगमता के साथ-साथ पर्याप्त मात्रा में मिलेगा ? परंतु केंद्र सरकार के इस आश्वासन पर केवल आश्वासन की चोट देखी जा रही है !हो उल्टा रहा है ,कई छोटे किसान की पहुंच से यूरिया छूट गया है ! कई ग्रामीण क्षेत्र के छोटे किसान बिना यूरिया खाद के फसल पैदाकरने को मजबूर हो रहे हैं !विशेष तौर पर डिफाल्टर किसान एवं अऋणी किसान उन्हें भी सोसायटी द्वारा यूरिया नहीं दिया जा रहा है ! जबकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया था कि सोसाइटी से सभी किसानों को यूरिया खाद मिलेगा परंतु हकीकत में धरातल पर कहानी कुछ और है? मुख्यमंत्री का आदेश मिट्टी मे रौंद दिए गए हैं !
50 लाख बीएस-6 वाहनों में हर साल 50 करोड़ किलो यूरिया की खपत हो रही
यूरिया को अमूमन फसलों के लिए जरूरी रासायनिक खाद के रूप में ही जानते हैं। लेकिन 1 अप्रैल 2020 से बीएस-6 मानक लागू होने के बाद कार, बस, ट्रक जैसे डीजल वाहन इसके नए उपभोक्ता के रूप में उभरे हैं। मानक लागू होने के 2 साल के भीतर ही खपत 50 करोड़ किलो यानी 5 लाख टन को पार कर चुकी है।
दरअसल बीएस-6 वाहनों में ईंधन के साथ प्रदूषण नियंत्रण के लिए ‘डीजल एग्जास्ट फ्लुएड’ (डीईएफ) की भी खपत होती है। इस डीईएफ मे एक तिहाई हिस्सा यूरिया और शेष पानी होता है। इस डीईएफ की खपत, डीजल की कुल खपत के 3 से 5% तक होती है।
वाहन के हॉर्स पावर के अनुसार यूरिया की सालाना खपत 10 से 1000 किलो तक हो सकती है। पहले ही यूरिया के संकट से जूझ रहे भारत में बीएस- 6 वाहन एक नई चुनौती बनकर उभरे हैं। भारत अभी भी यूरिया की अपनी जरूरत का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है।
30 लाख लघु किसानों की जरूरत के बराबर
यूरिया की एक बोरी 45 किलो की होती है। इस लिहाज से देखें तो वाहनों में हो रही मौजूदा खपत करीब 1 करोड़ 20 लाख बोरी की है। यह मात्रा लघु कृषक यानी 2.5 एकड़ जोत वाले 30 लाख किसानों की एक सीजन जरूरत को पूरा करने में सक्षम है। बता दें कि यह संख्या यूपी के कुल लघु कृषकों की संख्या (30 लाख) के लगभग बराबर है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी कीमत
दरअसल खाद की किल्लत की मुख्य औऱ पहली वजह अंतराष्ट्रीय बाजार में इसकी आसमान छूती कीमतें हैं. चीन ने एक तरफ उर्वरक के एक्सपोर्ट पर अस्थायी रोक लगाई तो दूसरी तरफ बेलारूस के खिलाफ वेस्टर्न इकनॉमिक सेक्शंस के चलते ग्लोबल मार्केट में उर्वरक की कीमतें प्रभावित हुई है. जिसका असर भारत में खाद के आयात पर भी पड़ा है.
जमाखोरी भी सबसे बड़ी वजह
आपको बता दें कि यूरिया संकट की वजह केवल आयात में कमी नहीं है. देश में भी यूरिया का उत्पादन गिरा है. अप्रैल-जुलाई में यूरिया का उत्पादन घटकर 78.82 लीटर जो एक साल पहले इसी अवधि में 82.18 लीटर था. इसके अलावा सबसे बड़ी वजह यूरिया और डीएपी की कमी की एक मुख्य वजह जमाखोरी भी है.