
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने की तारीफ और कहा कि– “उज्जैन के एक किसान श्री भानू भदौरिया जी ने मालवा की धरती पर केले की खेती कर साबित कर दिया है कि “मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है”.
– एकमात्र किसान भानू भदौरिया ने 4 हेक्टेयर क्षेत्र में लगाए 20 हजार पौधे
उज्जैन (। मालवा में अमूमन गेहूं, सोयाबीन, आलू, प्याज की ही खेती साधारण रूप से की जाती है। औषधीय व अन्य फलों की खेती बहुत कम मात्रा की जाती है। उज्जैन के एक किसान भानू भदौरिया ने केले की खेती की, जो कि अमूमन उज्जैन और उज्जैन के आसपास दूर-दूर तक
एकमात्र किसान भानू भदौरिया ने 4 हेक्टेयर क्षेत्र में लगाए 20 हजार पौधे
उज्जैन । मालवा में अमूमन गेहूं, सोयाबीन, आलू, प्याज की ही खेती साधारण रूप से की जाती है। औषधीय व अन्य फलों की खेती बहुत कम मात्रा की जाती है। उज्जैन के एक किसान भानू भदौरिया ने केले की खेती की, जो कि अमूमन उज्जैन और उज्जैन के आसपास दूर-दूर तक नहीं होती है। संभवतः पूरे उज्जैन में भदौरिया ही एकमात्र ऐसे किसान हैं, जिन्होंने वर्तमान में केले की खेती लगाई है।
कृषक भानू भदौरिया ने मुल्लापुरा स्थित उजड़खेड़ा हनुमान मंदिर के पास 4 हेक्टेयर क्षेत्र में केले के 20 हजार पौधे लगाए। जून-2021 में टिशू कल्चर जी-9 वैरायटी के पौधे लगाए थे। ये पौधे भदौरिया ने बुरहानपुर की नर्सरी से 16 रुपये प्रति पौधे की दर से खरीदे थे। भदौरिया का इस क्षेत्र में पहले बगीचा निर्माण की योजना थी। इस संबंध में जब उन्होंने अपने मित्र संजयसिंह से चर्चा की तो उन्होंने केले के बगीचे के संबंध में बताया। चूंकि उज्जैन में दूर-दूर तक कोई केला नहीं लगाता। इस कारण केले लगाने को लेकर कुछ संशय भी रहा। इस संबंध में उद्यानिकी विभाग घट्टिया के सेवानिवृत्त उद्यान विकास अधिकारी जेसी राठौर से संपर्क किया। उन्होंने केले की फसल के संबंध में सभी जानकारी प्रदान की। चूंकि केले में गर्मी में तापमान के अनुसार पानी दिया जाता है और तेज ठंड के कारण केले की फसल जल जाती है और तेज आंधी-तूफान में भी केले की फसल नष्ट हो जाती है। ठंड से बचाव के लिए खेत के आसपास भूसा जलाया गया। तेज हवा के बचाव के भी प्रयास किए गए।
भदौरिया ने जून-2021 में केले के लिए खेत को तैयार किया। इसके लिए उन्होंने खेत में मल्चिंग (गराड़ बनाना) लगाई, जिससे अनावश्यक घास न उग सके और जमीन से अनावश्यक वाष्पीकरण न हो। फिर उसमें होल करके पौधे लगाए गए। साथ ही टपक पद्धति से पानी की व्यवस्था की गई, जो गर्मी के अनुरूप थी। इस मौसम में अब उनकी खेत की फसल तैयार हो गई है। उज्जैन के कुछ व्यापारियों से सौदे की भी चर्चा रही है। एक पौधे में 25 किलो फल आ रहे हैं। इस फसल की खासियत है कि यह 5 वर्षों तक फल देता है।