हर्बल (जड़ी-बूटी ) होली के रंग तैयार होंगे घर- घर आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक रास्ता

भारत को उत्सवों की भूमि के रूप में जाना जाता है, जहाँ बड़ी संख्या में लोग अपने रंगीन त्योहारों की जीवंतता को खुशी के साथ मनाते हैं। होली देश के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है जो वसंत और फसल कटाई का जश्न मनाता है।
लेकिन प्रति वर्ष लगभग 100,00,000 टन रासायनिक/सिंथेटिक रंगों का उपयोग लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा करता है। होली के रंगों में हानिकारक रसायनों जैसे ऑक्साइड, काँच के कण और धातु के पदार्थ आदि की मौजूदगी उन्हें इंसानों की त्वचा के लिए खतरनाक बना देती है। ऐसी स्थिति में पौधों के विभिन्न हिस्सों का उपयोग – पिसी हुई नीम की पत्तियों (आजादीराचता इंडिका) से बना हरा रंग, पालक और हल्दी (करक्यूमा लौंगा) से बने पीले व लाल रंग – कर रंगों का उत्पादन एवं संवर्धन पर्यावरण हितैषी होली हेतु समय की मांग है। ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण व प्रोत्साहन के लिए आगे कदम बढ़ाते हुए कृषि विज्ञान केंद्र देहरादून, उत्तराखंड ने पर्यावरण के अनुकूल हर्बल रंग बनाने का निर्णय लिया। स्थानीय स्तर पर प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने के लिए, केवीके ने कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए। तैयारी की विधि को बहुत सरल रखा गया ताकि ग्रामीण महिलाएँ इसे सीख सकें और उत्पादन कर सकें। हर्बल होली के रंग की तैयारी के आधार पर लघु-उद्यम में समय और पूँजी का निवेश बहुत कम है। समय बीतने के साथ ही लोग त्योहार मनाने के लिए हर्बल रंगों का इस्तेमाल भी पसंद करते हैं। बाजार में हर्बल रंगों की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए केवीके ने ग्रामीण क्षेत्रों में आय सृजन के लिए स्वयं सहायता समूह के माध्यम से हर्बल होली रंग तैयार करने और प्रचारित करने हेतु एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम के दौरान महिलाओं को सिंथेटिक होली के रंगों के दुष्परिणाम, हर्बल होली के रंगों के फायदे, होली के रंग तैयार करने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग, लघु-उद्यम में पूँजी निवेश, लाभ अनुपात और उद्यम शुरू करने के लिए बुनियादी आवश्यकताओं आदि के बारे में भी अवगत कराया गया। वर्ष 2019-20 और 2020-2021 के दौरान, केवीके ने प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए ग्रामीण महिलाओं का चयन किया। 2019-20 के दौरान लगभग 4 और 2020-21 के दौरान 16 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए।

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