गेहूं फसल को उसके हिस्से का खाद मिल पाएगा ,इस पर बड़ा संशय है….? नेनो यूरिया भी कोई खास कमाल नहीं कर पा रहा है

manish bafana -इस खरीफ की बुवाई के समय संकट से बच भी गए तो रबी की फसल आते-आते तो निश्चित ही देश में यूरिया ,डी.ए.पी. और पोटाश की किल्लत होने की आशंका है।

इन दिनों रसायनिक खाद की मारामारी चल रही है।मध्य प्रदेश के जिलेभर में किसान खाद के संकट से जूझ रहे हैं। किसानों को खाद न मिलने से वे क्षेत्रीय विधायक, मंत्री पर खासी नाराजगी जाहिर करते दिख रहे है। किसानों का कहना है जिले के जनप्रतिनिधि, विधायक और मंत्री खाद संकट से निजात दिलाने के लिए आगे नहीं आ रहे है। जिले का किसान सड़क पर है जनप्रतिनिधियों को कोई फिक्र नहीं है।

खाद के संभावित संकट का तात्कालिक कारण यूक्रेन का युद्ध है। हम रासायनिक खाद के लिए लगभग विदेश से आयात पर निर्भर हैं। हमारा 100 प्रतिशत पोटाश, 55 प्रतिशत डी.ए.पी. और 30 प्रतिशत यूरिया सीधा विदेश से आयात किया जाता है। जो यूरिया हमारे यहां बनता है, वह भी विदेश से आयातित गैस से बनता है। इस युद्ध के चलते रूस से खाद की सप्लाई कम हो गई है, चीन ने अपने भंडार भरने शुरू किए हैं और बाहर खाद का निर्यात कम कर दिया है। दीर्घकाल में तेल और प्राकृतिक गैस की सप्लाई कम होने से यूरिया का संकट भी गहरा होगा।

डी.ए.पी. जरूरत से एक चौथाई और पोटाश तथा एन.पी.के. तो जरूरत का एक दशांध ही स्टॉक में है। यदि तुरंत आयात न किया तो संकट अनिवार्य है।

आयात में सरकार हाथ रोक कर बैठी है। युद्ध की वजह से पैट्रोलियम पदार्थों और खाद के दाम चढ़ गए हैं। इसके चलते सरकार खाद कंपनियों को जो अनुदान देती है, उसका खर्चा बढ़ गया है। वित्त मंत्री ने पिछले बजट में खाद की सबसिडी के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपए रखे थे, लेकिन आज के दाम के हिसाब से यह खर्च दोगुने से ज्यादा यानी 2.1 से 2.3 लाख करोड़ रुपए तक जाएगा। इसलिए सरकार खाद के आयात को हतोत्साहित कर रही है। संकट आसन्न है, लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। मध्य प्रदेश के कई जिलों के कलेक्टरों ने समितियों से मांग पत्र देने को कहा है ,जिससे खाद की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सके। कृषि विभाग ने भी खाद का आकलन करके अपनी रिपोर्ट तैयार की है, परंतु यह दस्तावेज मात्र कार्यवाही दिखाने के लिए माने जाते हैं। केंद्र सरकार भारी भरकम सब्सिडी वहन करने में असमर्थ है । यह बात सही है, इसलिए केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती की दिशा में बढ़ रही ह। देश की सरकार ने किसानों को यूरिया के स्थान पर नेनो यूरिया की बोतल इस्तेमाल करने के लिए बढ़-चढ़कर प्रसार किया परंतु किसानों कि ना पसंद और इसके परिणाम को लेकर कोई विशेष वैज्ञानिक तथ्य सामने ना आने के कारण , किसानों में नैनो यूरिया के प्रति कोई खास रुचि नहीं देखी जा रही है । यूरिया ,डीएपी लेने वाले किसानों को जबरन नैनो यूरिया की बोतल विक्रेता पकड़ा रहे हैं परंतु किसान इसको लेने से हिचक रहे हैं | यह उम्मीद है कि , केंद्र और राज्य की डबल इंजन की सरकार होने का लाभ मध्य प्रदेश के किसानों को मिलेगा। भरपूर डीएपी, यूरिया मध्य प्रदेश सरकार को मिले और किसानों को खेत तक पहुंचे तो उत्पादन भी बड़े और किसानों की माली हालत में सुधार हो सके वैसे भी छोटे किसानो को उर्वरक

नहीं मिलता । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश को संबोधित करते हुए कहा था कि, अब किसानों को लाइन में लगकर खाद नहीं लेना पड़ेगा देश में अब खाद का संकट कांग्रेस सरकार के साथ खत्म हो गया है परंतु इस रबी फसल में गेहूं, सरसों ,चना फसलों के लिए खाद का संकट गहराता हुआ नजर आ रहा है। प्राकृतिक खेती का प्रपंच और नैनो यूरिया के प्रपंच में किसानों ना डाले तो बेहतर होगा……

एक आधार कार्ड पर दो से तीन बोरी

किसानों को खाद संकट को लेकर सहकारी समितियां आधार कार्ड व खेती की पुस्तिका मांग रही है। किसानों को दो या तीन बोरी दी जाती है। जबकि हरेक किसान को दस से बीस बोरी की आश्यकता होना बता रहे हैं। ऐसे में वितरण केंद्रों पर कतार लगी रहती है। जो किसान एक बार कतार में खड़े होकर खाद खरीद लेते है। वे पुन खाद के लिए कतार में नजर आते हैं।

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