कुल मिलाकर खेती या उससे जुड़े काम करने वाले करीब 11,290 लोगों ने साल 2022 में आत्महत्या की थी जबकि साल 2021 में यह संख्या 10,881 थी।

साल 2021 की तुलना में किसानों की आत्महत्या साल 2022 में 2.1 फीसदी कम हो गई। हालांकि इस दौरान खेतों में काम करने वाले मजदूरों की आत्महत्या दर में 9.3 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह जानकारी 2022 में दुर्घटना एवं आत्महत्या के कारण भारत में हुई मौत की रिपोर्ट में दी गई है। यह रिपोर्ट कुछ दिन पहले ही सार्वजनिक की गई थी।
कुल मिलाकर खेती या उससे जुड़े काम करने वाले करीब 11,290 लोगों ने साल 2022 में आत्महत्या की थी जबकि साल 2021 में यह संख्या 10,881 थी। आंकड़ों में वृद्धि का मुख्य कारण खेतों में मजदूरी करने वालों की आत्महत्या थी। साल 2020 में करीब 5,579 किसानों ने आत्महत्या की थी जबकि खेतों में काम करने वाले 5,098 मजूदरों ने खुदकुशी की थी।
आंकड़े दर्शाते हैं कि खेती को अपना पेशा बनाने वाले लोगों की आत्महत्या लगातार कम हो रही है मगर खेतों में काम करने वाले अधिक खुदकुशी कर रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि निचले तबके के लोगों को अधिक परेशानी है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में वास्तविक मजदूरी लगभग स्थिर है। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि आत्महत्या करने के कई कारण होते हैं। इनमें पारिवारिक परेशानियों के साथ-साथ कर्ज शामिल होता है।
कुल मिलाकर खेती या उससे जुड़े काम करने वाले करीब 11,290 लोगों ने साल 2022 में आत्महत्या की थी
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के साल 2018-19 के लिए सिचुएशनल असेसमेंट सर्वे (एसएएस) से पता चलता है कि फसल उत्पादन से आय साल 2012-13 के 47.9 फीसदी से कम होकर 37.3 फीसदी हो गई है जबकि मजदूरी से आय 32.3 फीसदी से बढ़कर 40.3 फीसदी हो गई है। इसलिए यह एक कृषि पर निर्भर परिवार के आय का मुख्य जरिया बन गया है। इसी तरह की प्रवृत्ति नाबार्ड के 2015-16 के वित्तीय समावेशन सर्वे (नाफिस) में भी देखने को मिली थी।
एसएएस सर्वे से यह भी पता चला कि छह वर्षों में (साल 2012-13 से साल 2018-19 के बीच) खेती करने वाले परिवारों की संख्या 9 करोड़ से बढ़कर 9.3 करोड़ हो गई जबकि इसी अवधि में खेती में शामिल नहीं होने परिवार भी 6.6 करोड़ से बढ़कर 8 करोड़ हो गए।