2018 के बाद किसानों की आय में कितनी वृद्धि हुई कोई जानकारी नहीं——
मनीष बाफना
राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार हो ,किसानों के लिए संवेदनशील अपने आप को बताती है परंतु यथार्थ और वास्तव में और कागजों में किसानों की स्थिति विपरीत और अलग है ।
मोदी सरकार ने किसानों की आमदनी को दुगना करने का संकल्प बहुत पहले लिया था । क्या किसानो की आमदनी दुगनी हुई है ? इस पर किसी प्रकार का सर्वे या आकलन केंद्र सरकार ने नहीं किया है ?यह प्रश्न आज खड़ा हो चुका है।
लोकसभा में भी केंद्र सरकार ने किसानों की आय कितने प्रतिशत बड़ी है और वर्तमान में किसानों की माली हालत किस स्थिति में है इसको छुपा के रख रखा है ।केंद्र सरकार ने इस पर भी कोई अपनी राय और जानकारी नहीं दी की कितने किसानो ने आत्महत्या की
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा 2012-13 में जो सर्वेक्षण किया गया था ,उस आधार पर प्रति किसानों के परिवार की मासिक आमदनी ₹6426 बताई गई थी } परंतु कई वर्ष पूरे होने के बाद भी ठोस सर्वेक्षण आज तक नहीं हुआ । जब तक देश के किसानों की माली हालत और उनकी आय का सही निराकरण और आकलन नहीं होगा तो देश भर में जो योजना संचालित की जारी है ,इसका लाभ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उन कम आमदनी वाले किसानों को कैसे मिलेगा, इस पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है ।
, एक किसान की औसत आय एक महीने की 2000 से भी कम है ।
2018-19 में NSSO ने थोड़ा बहुत किसानो की माली हालत पर आकलन किया , उसमें बताया गया था की , एक किसान की औसत मासिक आय 2000 से भी कम है ।
कृषि प्रधान देश में एक किसान कि आय एक महीने की ₹2000 से कम है तो ,यह कितना वीभत्स और डरावना स्वरूप दिखता है। जहां एक छोटे से छोटे चपरासी को भी एक महीने का वेतन 15000 रुपए मिलता है। एक नगर निगम में अस्थाई सफाई कर्मचारी को भी ₹7000 मासिक मिलते है। इस देश में अन्न पैदा करने वाले अन्नदाता किसान को मात्र एक महीने में केवल ₹2000 से कम आय अर्जित होती है । आज की स्थिति में ऐसे कृषि प्रधान देश में किसान मुसीबत की अंधेरी गहराई में जा चुका है। इसका आकलन केंद्र सरकार को शीघ्र अति शीघ्र करना चाहिए। केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकार किसान सम्मन निधि से किसानों को पैसा दे रहे हैं परंतु यह कोई टिकाऊ हल नहीं है ।
यह देश के लिए बहुत बड़ा पीड़ा दायक सत्य है कि, यहां का विपक्ष भी किसानों की आर्थिक माली हालत का सर्वेक्षण करवाने के बजाय जातिगत सर्वेक्षण करने के पक्ष में है। किसान की आमदनी से ज्यादा जातिवाद में ज्यादा चुनावी लाभ दिख रहा है।