harit malav -खाद्यान्न भंडारण योजना पर 1.25 लाख करोड़ रुपये की राशि व्यय होने की संभावना है और इसमें कई एजेंसियों का तालमेल जरूरी होगा।
दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना के लिए एक प्रायोगिक परियोजना प्रस्तुत की। माना जा रहा है कि लंबी अवधि में यह कृषि क्षेत्र के लिए लाभदायक साबित होगी।

यह प्रायोगिक परियोजना 11 राज्यों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को लक्षित कर रही है और अनुमान है कि अगले पांच साल की अवधि में सात करोड़ टन खाद्यान्न की भंडारण क्षमता तैयार की जाएगी। यह योजना सीधे तौर पर देश में खाद्यान्न भंडारण क्षमता की कमी को दूर करना चाहती है लेकिन सभी अंशधारकों के लिए इसके कुछ न कुछ लाभ होंगे।
इनमें किसान और उपभोक्ता सभी शामिल हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन (2021) के आंकड़ों से पता चलता है कि कई देशों में जहां अधिशेष भंडारण क्षमता है, वहीं भारत के साथ ऐसा नहीं है। देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 31.1 करोड़ टन है जबकि कुल भंडारण क्षमता बमुश्किल 14.5 करोड़ टन की है। फिलहाल खाद्यान्न प्रबंधन (खरीद एवं भंडारण) सुविधा भारतीय खाद्य निगम, केंद्रीय भंडारण निगम तथा कई अन्य छोटी-बड़ी सरकारी एजेंसियों के माध्यम से दी जा रही है।
इस संदर्भ में पैक्स को गोदाम तैयार करने, कस्टम हायरिंग सेंटर बनाने, प्रसंस्करण इकाइयां तैयार करने तथा उचित मूल्य की दुकानों की प्रक्रिया में शामिल करना वास्तव में भंडारण व्यवस्था के विकेंद्रीकरण की दिशा में उठाया गया कदम है। इससे देश भर में कृषि क्षेत्र की अधोसंरचना का विकास होगा। उल्लेखनीय है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न की सरकारी खरीद इसलिए सीमित है कि गेहूं और चावल के उत्पादन का भौगोलिक भूभाग सीमित है।
ऐसे में यह उम्मीद है कि यह नई पहल सरकारी एजेंसियों की खरीद प्रक्रिया में विविधता लाएगी और देश भर के किसानों तक इसका लाभ पहुंच सकेगा। इसके साथ ही पैक्स जो कि जमीनी स्तर पर काम करने वाली सबसे छोटी सहकारी एजेंसियां हैं, वे अब तक कृषि उत्पादन के लिए अल्पकालिक ऋण मुहैया कराने की प्रक्रिया से जुड़ी रही हैं। यह त्रिस्तरीय सहकारी ऋण ढांचे का सबसे अंतिम सिरा है जहां वे खेती तथा उससे जुड़ी गतिविधियों में लगे समुदायों तक पहुंचती हैं। यह बात पैक्स को ग्राम पंचायत और गांवों के स्तर पर अनाज भंडारण के लिए उपयुक्त बनाती है।
निश्चित तौर पर नई अनाज भंडारण योजना पैक्स को विविध काम करने वाली आर्थिक संस्था में बदल सकती है और कृषि क्षेत्र में सहकारिता की भूमिका को और अधिक मजबूत कर सकती है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के ग्रामीण और कृषि संबंधी परिदृश्य को बदलने में सहकारिता क्षेत्र की अहम भूमिका भी रेखांकित होती है।
यह योजना खाद्यान्न की बरबादी रोकने में भी मदद करेगी। इसका परिणाम किसानों के लिए उच्च आय और उपभोक्ताओं के लिए कम कीमत के रूप में सामने आएगा। किसानों द्वारा हताशा में कम कीमत पर अपनी उपज बेचने की घटनाएं भी कम होंगी और साथ ही परिवहन की लागत में भी कमी आएगी।
निश्चित तौर पर इस पहल की सफलता संबंधित पैक्स तथा इन पैक्स के बीच के आपसी संपर्क तथा स्थानीय और उच्च स्तर पर सरकार के साथ उनकी संबद्धता पर निर्भर करेगी। उनकी क्षमता में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने 2,516 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की थी ताकि 63,000 सक्रिय पैक्स का कंप्यूटरीकरण किया जा सके।