खेती का अनुसंधान पैसे की कमी के अभाव में  कांप रहा है

अनुसंधान के लिए जब पैसा नहीं होगा तो किसानों का विकास कैसे होगा

MANISH BAFANA –कृषि अनुसंधान में निवेश कम होने से कृषि प्रधान देश की अर्थव्यवस्था पर बट्टा लग सकता है |कृषि अनुसंधान ठप होने पर किसानों की आय दुगनी करना बहुत दूर की बात होगी । कृषि क्षेत्र में पिछड़ने का मतलब होता है देश को बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी में धकेलना | रिसर्च के आकड़े स्पष्ट बता रहे हैं कि देश का कृषि   अनुसंधान बजट की कमी  के कारण फूली सांसे  महसूस कर रहा है आने वाले कुछ समय बाद ICAR, कृषि विज्ञान केंद्र और एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की हालत बद से बदतर होगी। यह अनुसंधान संस्थान बजट की कमी के कारण किसानों के लिए कोई बेहतर परिणाम देने की क्षमता खो चुकी होगी।

एक हाल के रिसर्च पेपर में बताया गया है कि भारतीय कृषि अनुसंधान में निवेश में कमी हो रही है, जिससे कृषि क्षेत्र को समय पर बेहतर तकनीकी और वैज्ञानिक सहायता नहीं मिल रही है. इस लेख के अनुसार, 2011 से 2022 के बीच कृषि  रिसर्च में निवेश धीमा रहा है, जबकि इसमें निवेश से लाभ बहुत अधिक है. अगर कृषि रिसर्च पर एक रुपये निवेश करते हैं तो करीब 13.85 रुपये लाभ मिलता है. कृषि के सभी अन्य क्षेत्रों  की तुलना में सबसे अधिक रिर्टन मिलता है ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ में छपे लेख के अनुसार, ये रिसर्च पेपर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स और पॉलिसी रिसर्च (NIAP) द्वारा प्रकाशित किया गया है, जो कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अधीन काम करता है.

 कृषि अनुसंधान फंड का करीब 90% फंड आईसीएआर, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और कृषि विज्ञान केंद्रों के कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होता है

पिछले दो दशकों में कृषि कल्याण योजनाओं और कृषि शोध में निवेश का अनुपात देखें तो यह 4:1 से बढ़ कर 15:1 हो गया है यानी कृषि शोध की तुलना में कृषि कल्याण योजनाओं पर निवेश 15 गुना हो गया है। इसका खमियाजा कृषि अनुसंधान, शिक्षा एवं विस्तार (आरईई) को भुगतना पड़ रहा है। संसाधनों के आवंटन में एक असंतुलन देखा जा रहा है। 2023-24 के बजट में कृषि कल्याण योजनाओं के लिए 115,532 करोड़ रुपए तो कृषि अनुसंधान के लिए मात्र 9504 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया, जो कि कृषि कल्याण बजट का 8 प्रतिशत है। दुर्भाग्यवश, कृषि अनुसंधान फंड का करीब 90% फंड आईसीएआर, एसएयू और कृषि विज्ञान केंद्रों के कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होता है। शेष में से प्रशासकीय मामलों पर खर्च के बाद अनुसंधान के लिए कुछ ही फंड बचता है। आलम यह है कि आरईई के लिए संस्थागत इंफ्रास्ट्रक्चर होने के बावजूद आरएंडडी के लिए बिना किसी इंफ्रास्ट्रक्चर के कई नए संस्थान बना दिए गए और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के हालात बदतर होते जा रहे हैं। पिछले दशक में कृषि क्षेत्र में निजी निवेश तेजी से कम हुआ है और अस्पष्ट नीति का अभाव देखा गया है। नीतिगत खामियों, यों रेगुलेटरी अनिश्चितता, प्रक्रिया में देरी के चलते निजी क्षेत्र निवेश से हिचकिचा रहा है।

कृषि अनुसंधान में 1 रुपया के निवेश से 13.85 का लाभ

NACP के अनुसार, एक रुपया कृषि रिसर्च पर निवेश करने पर कृषि प्रसार से 7.40 रुपया, शिक्षा से 2.05, सड़क से 1.33, बिजली से 0.84 और सिंचाई नहर से 0.25 पैसे का रिटर्न लाभ मिलता है. कृषि और कृषि संबंधित गतिविधियों के रिसर्च के संबंध में निवेश पर लाभ में अहम भिन्नताएं पाई गई हैं. इस रिसर्च के मुताबिक अगर पशु विज्ञान के रिसर्च पर एक रुपया निवेश करते हैं तो इससे पशुपालन का लाभ बहुत अधिक है, क्योंकि एक रुपया के निवश पर 20.81 का रिटर्न मिलता है, जबकि संपूर्ण फसल विज्ञान क्षेत्र के लिए एक रुपया निवेश करने पर यह लाभ 11.69 रूपये है.

कृषि रिसर्च पर निवेश क्यों है जरूरी?

साल 2020-21 में भारत ने कृषि जीडीपी का 0.54 फीसदी खर्च कृषि रिसर्च पर किया जबकि कृषि प्रसार गतिविधियों पर कृषि जीडीपी का मात्र 0.11 फीसदी खर्च किया गया था. एक तरफ जहां चार दशकों में निजी और सरकारी क्षेत्र द्वारा कृषि और विकास पर कुल निवेश पाच गुना बढ़ा है, तो दूसरी तरफ 1981-1990 के बीच में कृषि रिसर्च पर 6.5 फीसदी का निवेश घटकर 2011-2020 में 4.4 फीसदी रह गया है.

सार्वजनिक क्षेत्र में कृषि निवेश को दोगुना करना आज की आवश्यकता है। अनुसंधान एवं विकास की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए अधिक निवेश की आवश्यकता है।

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