————जय किसान का झंडा केवल नारों में————-
MANISH BAFAN-तेज रफ्तार से भाग रहे उद्योगों के बीच कृषि को किस तरह आगे ले जाया जाए, यह सभी की समस्या है। स्वतंत्रता दिवस के 78वें वर्ष में भी हमारी समस्या यह है कि देश की तकरीबन आधी आबादी इस संकट ग्रस्त कारोबार से जुड़ी है, लेकिन हम दीर्घकालिक समाधान खोजने के बजाय अभी तात्कालिक राहत की राह पर ही हैं। खेती के नये तरीके नई तकनीक और इनोवेशन किसानों की किस्मत उनकी आर्थिक दशा को काफी हद तक बदल सकते हैं। केन्द्र सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का एक चुनौतीपूर्ण अभियान शुरू किया है। वर्ष 2024 तक किसी भी किसान की आय दुगनी नहीं हुई
1-दूध की कीमत किसानों को नहीं मिल पा रही है 2-सोयाबीन के भाव समर्थन मूल्य से ₹1000 कम चल रहे हैं 3- गेहूं और धन अपनी लागत मूल्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं 4- प्रतिदिन 2000 से अधिक किसान खेती छोड़ रहे हैं महंगाई कम करने में किसान अपना बलिदान दे रहे हैं क्योंकि उनको अपनी फसल का उचित दाम नहीं मिल रहा है |
जब हम किसानों की दयनीय स्थिति के बारे में अध्ययन करते हैं तो हमें किसान और खेती की मूल समस्या, कृषि उत्पादों का उचित मूल्य न मिलना है यदि हम किसान और सरकारी कर्मचारी के आय की तुलना करें तो हम देखते हैं 1970 में गेहूँ 76 रूपये कुंटल था और 2015 में करीब 1450 रूपये कुंटल, वर्ष 2023 में ₹2200 कुंतल यानि सिर्फ 19 गुना, जबकि इस दौरान सरकारी कर्मचारी के मूल वेतन और डीए 130 गुना बढ़ा, जबकि प्रथम वर्ग की सेवाओं में यह वृद्धि 170 गुना और कारपोरेट सेक्टर में यह बढ़ोत्तरी 300 से 1000 गुना थी, अगर इस अनुपात में किसान की तुलना करें तो गेहूँ कम से कम 8000 रूपये कुंटल होना चाहिए।जब हम अस्सी के दशक में कीमतों की बात करते हैं तो देखते हैं कि गेहूँ एक रूपये किलो दूध एक रूपया लीटर और देसी घी 5 रूपया किलो था। उस वक्त चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की तनख्वाह 80 रूपये और प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक का मूल वेतन195 रूपये था। जब हम आज की बात करते हैं तो देखते हैं कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को कम से कम 35000 रूपये और प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक को 45000 रूपये मिलते हैं जबकि प्रथम श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह और तेजी से बढ़ी है जबकि गेहूं का सरकारी मूल्य 22 रूपये 75 पैसे ही है। 43 साल में सरकारी नौकर की सैलरी में कम से कम 150 गुना बढ़ोत्तरी हुई जबकि गेहूँ की कीमत 18 गुना ही बढ़ी। जबकि इस दौरान 1 रूपया लीटर वाला डीजल 80 रूपया लीटर बिक रहा है और 2-3 रूपये वाली मजदूरी 400 रूपये प्रतिदिन हो गई है यानि किसान का खर्च तेजी से बढ़ा लेकिन बाकी लोगों के अनुपात में उस उपज की सही कीमत नहीं मिली।पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और साल 2011 में आई जनगणना की रिर्पोट के अनुसार हर रोज ढाई हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं। कुछ साल पहले आई सरकार की एक रिर्पोट में खुलासा हुआ था कि अगर मौका मिले तो देश के 50 फीसदी किसान खेती छोड़ना चाहेंगे।