जिस प्रकार हरित क्रांति अपने शीर्ष पर पहुंच रही है और हरित ध्वज उत्साहित होकर अपने उत्पादन कार्यक्रम को लगातार तेजी दे रही है देश के खाद्यान्न और भंडारण में रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन हो रहा है सरकार का राजनीतिक जीवन दीर्घायु होकर सीना चौड़ा हो रहा है उसमें अन्न दाताओं की भूमिका के साथ-साथ वैज्ञानिक और कृषि आदान उपलब्धता समय पर निश्चित होने से खेत में खड़ी हरित क्रांति की ध्वजा चमत्कारिक रूप से प्रफुल्लित हो रही है |
जैसे जैसे खेती का मौसम आता है , राजनीतिक धरा पर उतरने वाले सफेद पजामा कुर्ता धारी अपना नकली खाद दवाई का व्याख्यान देना शुरू कर देते हैं |
बीज नकली कैसे होता है यह अभी तक नहीं बताया | हाहाकार किसान की उपज का मूल्य नहीं मिलने पर नहीं होता है | परंतु हाहाकार अमानक खाद बीज दवाई पर होता है |
यदि पूरे देश में अमानक कृषि आदान का विक्रय हो रहा है तो प्रतिवर्ष उत्पादन तेजी से क्यों बढ़ रहा है
वर्ष 2024-25 में भारत का खाद्यान्न उत्पादन 353.96 मिलियन टन (3539.59 लाख मीट्रिक टन) रहा, जो एक रिकॉर्ड है. यह पिछले वर्ष के 332.29 मिलियन टन से 216.61 लाख मीट्रिक टन अधिक है. |
अमानक का ढिंढोरा राजनीति चमकाने में और बनाने में अपने माननीय लोग लगे रहते हैं कभी उन्होंने अमानक औषधि जो
मनुष्य के स्वास्थ्य पर सीधे प्रभाव डालती है उसे पर आज तक बात क्यों नहीं की ?
यह कैसी विडंबना है कि देश का खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है जहां पर खेती दवाई का उपयोग हो रहा है, परंतु मनुष्य का स्वास्थ्य अमानक फार्मास्यूटिकल औषधि की वजह से लगातार गिर रहा है | इस पर कभी भी ना लोकसभा में ना विधानसभा में और किसी अन्य सांसद विधायक यहां तक की जनप्रतिनिधि व्यक्ति ने इस पर कभी भी गंभीर आरोप नहीं लगाए
फार्मास्यूटिकल सेक्टर जो लगातार बात सामने आ रही है कि, उनकी मेडिसिन में दिए गए कांबिनेशन से अत्यंत कम मात्रा होती है। मगर कभी किसी औषधि मंत्री ने इस पर कभी भी चर्चा नहीं की
वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान लगातार अपनी आमसभा और अन्य सभाओं में नकली खाद बीज दवाइयां पर सख्त और कड़ा कानून लाने की बात कह रहे हैं | कंपनी और विक्रेता पर सख्त कार्रवाई होगी और सीधे जेल में डाल दिए जाएंगे | इस बात को लेकर बीज दवाई और खाद कंपनियों कृषि मंत्री के रवैया से हैरत में है उनका स्पष्ट तौर पर कहना है कि ,जब देश का खाद्यान्न प्रचुर मात्रा में हो रहा है और गोदाम में समा नहीं रहा है ऐसे में डराने बयान उद्योगों को चौपट करने वाला है |
कंपनियों से जुड़े हुए उद्योगपतियों ने बताया कि वर्तमान में देशभर में 65000 मेट्रिक टन पेस्टिसाइड का उपयोग होता है
इसमें कई पेस्टिसाइड का मानकता दो गुना है जिससे कीटनाशक का उपयोग अधिक से अधिक हो रहा है जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है जैसे कि CPERMETRIN 10 से कीट नियंत्रण हो सकता है परंतु विदेशी कंपनियों ने इसे 25% तक का रजिस्ट्रेशन करा कर जबरदस्ती खेती में डलवा कर पर्यावरण और मनुष्य के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल रहा है| कई कीटनाशक फंगीसाइड और खरपतवार नाशक अधिक मानकता के कारण कैंसर पैदा कर रहे हैं
पहले भी इस प्रकार की बात सामने आई थी कि कई विदेशी कंपनियां कृषि मंत्रालय पर अपना नियंत्रण रखकर अधिक मानक वाले पेस्टिसाइड को देशभर में बेचने के लिए दबाव डालती है | यह बात सही है कि, कुछ छोटे-मोटे कंपनियां अपना व्यावसायिक हित देखने के लिए नकली बाजार को जन्म देती है | परंतु अधिकांश कीटनाशक रसायन का प्रभाव खेती में उपयोगी होने के साथ-साथ कारगर भी हो रहा है | ऐसे में नई दिल्ली से बार-बार सख्त कानून बनाकर जेल में डालने की बात करके उद्योगों को डराने की पीछे क्या मंशा है, इसे समझने की जरूरत है | क्या अधिक कीटनाशकों का उपयोग कराकर भारत में कैंसर के अस्पताल खोलने के लिए विदेशी साजिश तो नहीं है | इसको भी समझना होगा ?? किसानों पर राजनीतिक करना अत्यंत सरल है | राजनीति चमकाने के लिए अधिकांश जनप्रतिनिधि लोग नकली कीटनाशक नकली बीज नकली खाद पर बयान देते रहते हैं | किसानों को सिर्फ और सिर्फ उनकी उपज का वाजिद समर्थन मूल्य मिलने की उम्मीद हमेशा सरकार से रहती है | सोयाबीन ₹4000 कुंतल मंडी में बिक रही है जबकि समर्थन मूल्य 5100 के ऊपर है सीधे-सीधे ₹1200 कुंटल का नुकसान किसानों को झेलना पड़ रहा है काश कृषि मंत्रालय इस पर ज्यादा विचार करें | केवल और केवल राजनीतिक बटोरने के लिए सख्त कानून बनाने की बात करना उद्योग जगत में घबराहट पैदा करने वाली बात है | अधिकांश खाद का निर्माण सरकारी कंपनियां IFFCO, KRABHCO ,NFL करती है | बीज उत्पादन का जिम्मा भी मध्य प्रदेश में देखा जाए तो उत्पादन समितियां जो की एक सरकारी समिति सरकार के नियंत्रण में है वह कैसे नकली बीज पैदा कर सकती है | देशभर में बीज उत्पादन कार्यक्रम सीड सर्टिफिकेशन सरकारी विभाग के माध्यम से होता है | अधिकांश मुख्य फसल आज भी अपना समर्थन मूल्य होती जा रही है परंतु उस पर सख्त कानून बनाने की चेष्टा सरकार को नहीं है |