कितनी मात्रा में हो नाइट्रोजन का उपयोग कृषि में

कृषि भूमि से अतिरिक्त नाइट्रोजन का अपघटन होने से यह गैसीय प्रदूषकों के रूप में भी बदल सकती है। जिससे लोगों में सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन और निचले स्तर के ओजोन प्रदूषण को बढ़ाने तथा समताप मंडल के ओजोन के विनाश में अहम भूमिका निभाती है। इसलिए, खाद्य उत्पादन को बढ़ाने लेकिन पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए नाइट्रोजन का सावधानीपूर्वक उपयोग एवं इसको प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
खाद्य सुरक्षा के लिए फसलों के विकास और उपज को बढ़ाने हेतु उर्वरकों की जरूरत होती है। वहीं दूसरी ओर उर्वरकों से पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों से निपटना भी बहुत आवश्यक है। इसी क्रम में कृषि के लिए नाइट्रोजन उर्वरकों के उपयोग में सुधार करने की तुरंत आवश्यकता पर जोर दिया गया है। लेकिन क्या हम नाइट्रोजन की सही मात्रा की माप कर सकते हैं? एक महान लेखक का कहना था कि यदि आप चीजों को माप नहीं सकते, तो आप इनमें सुधार भी नहीं कर सकते हैं। अब एक अध्ययन इसको मापने के लिए सबसे अनोखे अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का पहला उपकरण प्रदान कर रहा है। इसके लिए प्रोफेसर शिन झांग तथा उनके सहयोगियों ने विश्वविद्यालयों, निजी क्षेत्र के उर्वरक संघों और संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) सहित दुनिया भर के दस अलग-अलग शोध समूहों के लगभग तीस शोधकर्ताओं के परिणामों का विश्लेषण किया हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर शिन झांग ने कहा कि यह अंतर-तुलनात्मक परियोजना शोधकर्ताओं, कृषिविदों और नीति निर्माताओं को यह पहचानने में मदद करती है कि हम नाइट्रोजन बजट के लिए लगाए गए अनुमानों में कहां सुधार कर सकते हैं। नाइट्रोजन के प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण प्रदूषण जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए, यह जानकारी स्थायी नाइट्रोजन में सुधार करने का एक आधार है। उनमें से प्रत्येक ने यह अनुमान लगाया कि उर्वरक और खाद के रूप में फसल के लिए कितना नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है, फसलों में जितना नाइट्रोजन का उपयोग कम होगा, उतना ही पर्यावरण को नुकसान या इससे होने वाला प्रदूषण कम होगा। नाइट्रोजन कृषि क्षेत्र में बहुत मायने रखता है क्योंकि किसानों के लिए अच्छी फसल की पैदावार प्राप्त करना आवश्यक है। लेकिन जब इसका एक बड़ा हिस्सा फसलों द्वारा उपयोग नहीं किया जाता है, तो यह भूजल, नदियों, झीलों और मोहल्लों में नाइट्रेट के रूप में इसका रिसाव पर्यावरण में हो जाता है। जहां यह हानिकारक शैवालों के विकास में मदद करता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।

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