
दुनियाभर में कई मीठे जल वाली आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स), झीलें और नदियां मानवीय गतिविधियों से गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो रही हैं और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र की तुलना में बहुत तेजी से घट रही हैं। मीठे पानी के प्राकृतिक आवास के विनाश के बाद, आक्रामक प्रजातियों का प्रवेश देसी पौधों के जैव समुदायों और उनके पारिस्थितिक तंत्र के लिए सबसे बड़े वैश्विक खतरों में से एक माना जाता है। मीठे पानी की झीलों में बढ़ता प्रदूषण बायोटा (जलीय जीवजंतु) पर भारी दबाव डाल रहा है। जलीय पौधों की मूल प्रजातियां हमारे मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के उचित पारिस्थितिक कार्यों में मदद करती हैं।
हमारा यह अध्ययन इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। इसमें यह समझने के लिए किया गया था कि ट्राफिक (झीलों के पोषक तत्वों को बताने वाली अवस्था) अवस्था में वृद्धि और मानव-प्रेरित हस्तक्षेपों ने झीलों में जलीय पौधों की विविधता को कैसे प्रभावित किया है। (देखें, खतरे में जलीय पौधे) रायबरेली रोड के पास है बतमऊ झील, गोमती नगर स्थित कठौता झील और रामसर साइट समसपुर वेटलैंड्स को चुना गया जो रायबरेली के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित छह झीलों का संयोजन है। पोषक तत्वों की लोडिंग को समझने के लिए चयनित झीलों के प्रमुख जल गुणवत्ता मापदंडों का आकलन किया गया। यह देखा गया कि पोषक तत्वों के भार में परिवर्तन और मानव जनित हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप जलीय पौधों की सामुदायिक संरचना में परिवर्तन हो रहा है। झीलों की ट्रॉफिक अवस्था को तीन मुख्य मापदंडों का उपयोग करके मापा गया- कुल फास्फोरस, क्लोरोफिल ए और गहराई। जलमग्न, तैरते और उभरते मैक्रोफाइट्स प्रजातियों की समृद्धि को उनके बायोमास के अनुरूप निर्धारित की गई। मैक्रोफाइटिक विविधता पर प्रदूषण के प्रभाव को मापने के लिए, प्रजातियों की समृद्धि, शैनन-वीनर इंडेक्स व महत्व सूचकांक जैसे विविधता सूचकांकों का आकलन किया गया। कुल फास्फोरस में वृद्धि के साथ, जलमग्न मैक्रोफाइट्स की प्रजातियों की समृद्धि में उल्लेखनीय गिरावट हुई, जबकि फ्लोटिंग मैक्रोफाइट्स की प्रजातियों की समृद्धि में वृद्धि हुई।